‘मुजफ्फरपुर के लिचिया खिअईह बलमा हो’…अब पेड़ से तोड़ने के बाद भी ताजा रहेगी फलों की रानी, लीची अनुसंधान केंद्र का प्रयोग सफल

Litchi of Muzaffarpur will remain fresh

‘मुजफ्फरपुर के लिचिया खिअईह बलमा हो’…अब पेड़ से तोड़ने के बाद भी ताजा रहेगी फलों की रानी, लीची अनुसंधान केंद्र का प्रयोग सफल

भोजपुरी फिल्म ‘पिया रखिह सेनुरवा के लाज’ फिल्म का गाना ‘मुजफ्फरपुर के लिचिया खिअईह बलमा’ आज भी लोग चाव से सुनते हैं। मुजफ्फरपुर के लीची की मिठास विदेशों तक पहुंचती है। अब मुजफ्फरपुर की लीची पेड़ से तोड़ने के बाद भी ताजी रहेगी। इसका खुलासा राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने किया है।
 

Litchi of Muzaffarpur will remain fresh
Litchi of Muzaffarpur will remain fresh
लीची को लेकर नई बात पता चली है

हाइलाइट्स

  • मुजफ्फरपुर की लीची पेड़ से तोड़ने के बाद रहेगी फ्रेश
  • राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र का प्रयोग हो गया सफल
  • पेड़ से तोड़ने के 15 दिनों बाद तक लीची रहेगी टटका

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर की लीची विश्वभर में प्रसिद्ध है। लीची का स्वाद पूरा विश्व चखता है। लीची को लेकर शहर में अनुसंधान केंद्र भी है। अब लीची को लेकर एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) और मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएल) के सफल संयुक्त अनुसंधान में एक बात सामने आई है। अब पेड़ से लीची तोड़ने के बाद कम-से-कम 15 दिनों तक ये खराब नहीं होगी। मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र और बीएआरसी पिछले 2 सालों से इस विषय पर शोध कर रहा था। लीची के फलन को तोड़ने से कुछ दिन पहले एक खास तरह के केमिकल मिश्रण के छिड़काव के बाद लीची तोड़ने पर अगले 15 दिनों तक लीची फ्रेश और अपने अच्छे स्वाद में रहेगी।

3 दिन में लीची हो जाती है खराब

अब तक के शोध के परिणाम से उत्साहित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. विकास दास ने बताया कि प्री हार्वेस्टिंग के समय ही विशेष केमिकल के छिड़काव से लीची के छिलके को भूरे होने से बचाया जा सकेगा। साथ ही लीची के पल्प और फल में मजबूती लाकर लीची की सेल्फ लाईफ बढ़ाई जा सकेगी। फिलहाल, बड़े पैमाने पर लीची किसानों को हरेक साल कम समय में लीची के सड़ जाने के कारण नुकसान झेलना पड़ रहा है। भीषण गर्मी और तपिश के बीच फलने वाली लीची की पैदावार हरेक साल सेल्फ लाइफ कम होने की वजह से प्रभावित होती रही है। फिलहाल लीची तोड़ने के तीन दिनों के बाद ही ये खाने योग्य नहीं रह पाती है। लीची की लालिमा खत्म हो जाती है और छिलका भूरे रंग का हो जाता है। लीची का पल्प भी 3 दिन के बाद खराब होने लगता है। लीची पूरी तरह सूखने लगती है। ऐसे में किसानों को बड़े पैमाने पर हर साल क्षति का सामना करना पड़ता है। लेकिन यदि राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के इस शोध को किसानों के बीच लागू कर दिया जाएगा तो आर्थिक तौर पर किसानों को काफी मदद मिलेगी।

भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ने भी किया है शोध

कुछ साल पहले मुंबई की भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने लीची की सेल्फ लाइफ को 60 दिनों तक बढ़ाने के लिए शोध किया था। इसको लेकर पिछले 3 सालों में ट्रायल भी किया गया था। लीची की सेल्फ लाइफ ट्रायल करने के बाद बड़े शहरों में भी ट्रायल के तौर पर लीची को भेजा गया था। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की पहल पर मुजफ्फरपुर के राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में प्रोसेसिंग प्लांट भी लगाया गया है। जिसमें लीची की सेल्फ लाइफ को 60 दिनों तक करने के लिए काम किया जा रहा है। लेकिन भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का यह प्रयोग लीची को तोड़ने के बाद केमिकल प्रक्रिया से गुजरने के बाद सेल्फ लाईफ को बढ़ाने का काम होता है। वहीं राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने लीची के तोड़ने से पहले ही पेड़ पर केमिकल मिश्रण के छिड़काव के जरिए लीची के सेल्फ लाईफ को बढ़ाने का काम किया है।

अनुसंधान केंद्र निदेशक का बयान

मुजफ्फरपुर के मुसहरी स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विकास दास ने बताया कि पिछले 2 सालों से वैज्ञानिकों की टोली लीची की सेल्फ लाइफ बढ़ाने के के लिए प्रयासरत थी। 2 सालों के प्रयोग और शोध के बाद इसके उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। डॉ. विकास दास ने कहा कि लीची को छिड़काव के जरिए अधिक सख्त छिलके की परत को मजबूती देने पल्प को और अधिक टिकाऊ बनाने के साथ ही ऐसे सभी प्रयोग केमिकल छिड़काव के जरिए किए गए हैं। जिससे लीची तोड़ने के बाद भी घरों और बाजारों में 15 दिनों तक अपने सुगंध स्वाद और मिठास के साथ लोगों के लिए उपलब्ध हो सकेगी।
source: NBT

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