Diwali 2022 10 दिन पहले शुरू हो जाती थी तैयारी दीपावली को लेकर लोगों में रहता था विशेष उत्साह। वर्षा ऋतु में जन्मे विषैले कीट-पतंगे उक्का की लौ में जलकर हो जाते थे नष्ट। जिससे बीमारियां कम होती थीं। लोगों को इलाज धन के साथ स्वास्थ्य का लाभ होता था
उक्का पाती-धन सुकराती, लक्ष्मी आवे दरिद्रा भागे’…इसे पढ़ कुछ याद आया। दीपावली की शाम घर के बुजुर्ग यही बोलते हुए तो घर से दरिद्रता भगाते थे। घर में लक्ष्मी का प्रवेश हो, सुख-समृद्धि और खुशियों से परिवार भरा-पूरा रहे कुछ इसी मंगलकामना के साथ उक्का-पाती होती थी। दीपावली के दिन शाम में गृह देवता पर जले दीप से पटसन की लकड़ी और खर से बने उक्का (मशाल) में आग लगाई जाती थी। उसे घर के हर कोने में दिखाया जाता था। पहले लोग स्वयं उक्का तैयार करते थे। 10 दिन पहले इसकी तैयारी शुरू हो जाती थी। लक्ष्मी का प्रतीक होने के कारण उक्का-पाती को खेतों और धार्मिक स्थलों पर रखा जाता था। अब यह परंपरा विलुप्त होती जा रही है। कहीं-कहीं अब भी ग्रामीण हाट में 10 से 50 रुपये में बनी-बनाई उक्का-पाती दिखती है।
…ताकि अंधेरी जगहों पर भी फैले प्रकाश
गायघाट निवासी शिक्षक रामप्रह्लाद मिश्र कहते हैं कि जब भगवान राम अयोध्या से लौटे तो उनके आने की खुशी में लोगों ने दीपोत्सव मनाया। जिन जगहों पर दीपक का प्रकाश नहीं जा सका, वहां उक्का-पाती के माध्यम से लोगों ने रोशनी की। इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। वर्षा ऋतु में घातक कीट-पतंगे जन्म लेते हैं, जिससे बीमारी फैलने का खतरा होता है। उक्का-पाती की लौ में ये कीट जलकर नष्ट हो जाते हैं। विद्यापति ठाकुर बताते हैं कि घर में समृद्धि बनाए रखने और दरिद्रता दूर करने के उद्देश्य से मिथिलांचल, कोसी, सीमांचल और अंग प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में उक्का-पाती की परंपरा आज भी है। दीपावली के दिन घर में लक्ष्मी पूजा के बाद घर के सबसे वरिष्ठ सदस्य उक्का जलाते हुए पूरे घर में उद्घोष करते हैं। इसके बाद जलती हुई उक्का का पांच बार तर्पण करते हैं। जल कर बचे हुए उक्का से घर की महिलाएं सूप बजाकर दरिद्रता को बाहर करती हैं।
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पूर्वजों की होती विदाई
उक्का-पाती की धार्मिक मान्यताएं भी हैं। कहते हैं पितृ पक्ष में पूर्वजों को धरती पर आमंत्रित किया जाता है। दीपावली के दिन उक्का-पाती के माध्यम से प्रकाश दिखाकर उन्हें यमलोक की ओर विदा किया जाता है। पं. मोहित नारायण मिश्रा कहते हैं मिथिलांचल में इसकी परंपरा समृद्ध रही है। खर या संठी से बनाई गई हुका-लोली को ‘ऊक’ कहा जाता है। ऊक में आग लगाकर घर के विभिन्न हिस्सों में घुमाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार हुका-लोली से परिवार के मृत पूर्वजों को यमलोक या नर्क से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। इसे जलाने और इसके विसर्जन के समय मंत्रोच्चारण का नियम है।