Muzaffarpur on My Mind

muzaffarpur Man me Muzaffarpur

मन मे मुज़फ़्फ़रपुर

अपनी अलग पहचान बनाए हुए मुजफ्फरपुर की देश में अलग पहचान है। यदि आपका मन अपनी फैमिली के साथ मुजफ्फरपुर घूमने का है, तो आप यहां के प्रसिद्ध स्थानों में जा सकते हैं। आपको बता दें कि मुजफ्फरपुर में कटरा गढ़ (देव भूमि कटरा-धनौर गांव ) , भरवस्थान मंदिर , बा‍बा गरीबनाथ मंदिर ,लंगट सिंह महाविद्यालय सहित कई प्रसिद्ध स्थान हैं।
मुजफ्फरपुर-भारत की आज़ादी हेतु स्वतंत्रता आन्दोलन में प्राणाहूति की ऊर्जस्वित अग्नि धधकाने वाले अमर शहीद श्री खुदीराम बोस , लंगट सिंह, जुब्बा साहनी ,राम दयालु सिंह ,भोला प्रसाद सिंह ,और काव्य की धारा प्रवाहित करने वाले वल्लभ शास्त्री, रामबृक्ष बेनीपुरी जैसे महान साहित्यकारों और सी.पी. ठाकुर ((Parliamentarian, former Union Health Minister) et की जन्मभूमि व प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य जे बी कृपलानी और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ,महात्मा गांधी कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है।

अपने सूती वस्त्र उद्योग तथा आम और लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिये यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है, खासकर यहाँ की शाही लिच्ची का कोई जोड़ नहीं ।

1930 के नमक आन्दोलन से लेकर 1942 के भारत छोडो आन्दोलन के समय तक यहाँ के क्रांतिकारियों के कदम लगातार आगे बढ़ते रहे। मुजफ्फरपुर को इस्लामी और हिन्दू सभ्यताओं की मिलन स्थली के रूप में भी देखा जाता रहा है। दोनों सभ्यताओं के रंग यहाँ गहरे मिले हुये हैं और यही इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान भी है।

ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व वाले शक्तिपीठ पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है और काफी लोकप्रिय है

सांस्कृतिक दृष्टि से बोधगया की तरह कटरा गढ़ (देव भूमि कटरा-धनौर गांव मुजफ्फरपुर) भी एक बहुत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में शीर्ष है। प्राचीन काल से सनातन और हिन्दू सभ्यताओं के इतिहास को समेटे है। प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में देव भूमि कटरा-धनौर गांव गांव में स्थित शक्ति पीठ माँ चामुंडा मंदिर को देखने, पूजा-अर्चना करने हिन्दू धर्मावलंबी आते हैं। लोक मान्यताओ के अनुसार रजा जनक के भाई कुशध्वज की राजधानी कटरा गढ़ थी त था उनकी कुलदेवी माँ चामुंडा है | पौराणिक मान्यता है कि सती के मृत शरीर को लेकर जब शिव ने तांडव किया था तब देवी सती का एक नयन यहाँ गिरा था । कहा जाता है कि राम, माँ सीता ने देवी की पूजा की थी। मां दुर्गा के द्वारा चण्ड-मुण्डक वध इस स्थान पर हुआ

शिव का मंदिर बागमती और लखनदेइ के संगम तट पर है। कटरा गढ़ से लगभल 15 किलोमीटर की दूरी पर भरवस्थान मंदिर स्थित है। भरवस्थान स्थित बाबा आनंद भरव मंदिर (कटरा-औराई) बाबा आनंद जन-जन के महानायक है, सावन के महीने में यहाँ शिवलिंग का जलाभिषेक करने वालों भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

बा‍बा गरीबनाथ मंदिर इस शिव मंदिर को देवघर के समान आदर प्राप्त है। सावन के महीने में यहाँ शिवलिंग का जलाभिषेक करने वालों भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

राज राजेश्वरी देवी मंदिर शहर के उमाशंकर प्रसाद मार्ग स्थित यह मंदिर उत्तर बिहार के प्रमुख शक्तिपीठों में गिना जाता है। यहां सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है।

बगलामुखी मंदिर शहर के कच्ची सराय रोड स्थित यह मंदिर तांत्रिक साधना का केन्द्र माना जाता है। नवरात्र हो या आम दिन यहां तांत्रिकों की भीड़ रहती है। नवरात्र में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

छिन्नमस्तिका मंदिर कांटी स्थित छिन्नमस्तिका मंदिर सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है।

भष्मी देवी मंदिर मीनापुर स्थित भष्मी देवी मंदिर में आश्रि्वन नवरात्र में उपासना का विशेष महत्व है। इनके दर्शन-पूजन से भक्तों को यश-कीर्ति मिलती है। कहा जाता है कि यहां मां सती का कपोल गिरा था।

बसोकुंड: जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली के निकट बसोकुंड में लिच्छवी कुल में हुआ था। यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र है। यहाँ अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान भी है।

कोठिया मजार (कांटी)

शिरूकहीं शरीफ (कांटी):

शहीद खुदीराम स्‍मारक:

मज़ार हज़रत दाता कम्मल शाह

लंगट सिंह महाविद्यालय मुजफ्फरपुर स्थित बिहार विश्वविद्यालय का एक अंगीभूत महाविद्यालय है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की तर्ज़ पर बने इस महाविद्यालय के भवन का उद्घाटन 26 जुलाई 1922 को तत्कालीन गवर्नर सर हेनरी व्हीलर ने किया था। एल . एस .कॉलेज का भवन मुजफ्फरपुर के लाल-किला के रूप में भी प्रसिद्द है तथा यह वास्तुकला और भवन निर्माण की अनूठी मिसाल भी पेश करती है। महाविद्यालय परिसर में स्थापित तारामंडल देश का पहला तारामंडल माना जाता है जहाँ अन्तरिक्ष से सम्बंधित अनुसन्धान होते थे, फ़िलहाल यह बंद पड़ा है। महविद्यालय परिसर में ११-१२ अप्रैल को पुरे चंपारण आन्दोलन की रुपरेखा तैयार की गयी थी| उस समय जे.बी.कृपलानी और प्रख्यात शिक्षाविद एच. आर. मलकानी, तत्कालीन छात्रावास अधीक्षक ने उनके विश्राम और आतिथ्य की व्यवस्था की थी| बापू ने परिसर स्थित कुँए पर प्रातःकालीन स्नान-ध्यान कर किसानों की दुर्दशा सुधारने का संकल्प भी लिया था, जिसकी याद के रूप में गाँधी- कूप कॉलेज परिसर में मौजूद है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी महाविद्यालय के इतिहास विभाग में शिक्षक थे तथा अपनी “उर्वर्शी”, जिसपर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था, की रचना यही की थी| १९५२ में राज्यसभा के सांसद बनने तक वे यही शिक्षक थे।