बिल्ली चूहे को क्यों ना पसंद करती है और शेर को बिल्ली ज़रा भी पसंद नहीं, ऐसा क्यों जानिए इस कहानी के ज़रिए
बिल्ली को शेर की मौसी कहा जाता है। लेकिन शेर को तो बिल्ली ज़रा-भी पसंद नहीं आती। आख़िर क्यों? और ऐसा भी क्या है कि बिल्ली जैसी चालाक प्राणी नन्हे चूहे के पीछे पड़ी रहती है? इसी मुद्दे को और रोचक बनाती जंगल की एक कहानी बच्चों को सुनाइए।
बहुत पुरानी बात है। जंगल का राजा शेर बिल्ली पर बहुत भरोसा करता था। बिल्ली चपड़ी मौसी के नाम से मशहूर थी। चपड़ी मौसी शेर की सलाहकार भी थी। शेर के दरबार में चूंचूं चूहा भी था। वह शेर का मंत्री था। चूंचूं बुद्धिमान था। संकट में चूंचूं ही शेर के काम आता। चपड़ी मौसी बहानेबाज़ थी। बीमारी का बहाना लेती। एक दिन शेर ने बिल्ली से कहा, ‘चपड़ी मौसी। जब-जब हम मुसीबत में होते हैं, चूहा ही हमें उबार लेता है।’ यह सुनकर बिल्ली जल-भुन गई। मौक़ा देखकर बिल्ली चूहे से बोली, ‘पिद्दी भर के छोकरे। कसम खाती हूं।’ एक दिन तुझे ज़रूर हराऊंगी।’ चूहा मुस्कराया। प्यार से बोला, ‘एक दिन शेर जान जाएगा कि तुम धोखेबाज़ हो। मेरा भी वादा है कि एक न एक दिन तुम्हारी पोल खोल दूंगा।’ बिल्ली तैश में आ गई। पंजा दिखाते हुए बोली, ‘ऐसा कभी नहीं होगा। मैं शेर की मौसी हूं। समझे।’
एक दिन की बात है। दरबार सजा था। शेर बोला, ‘प्रजा में लोकप्रिय होने का सरल उपाय क्या है?’ चूहे को इसी अवसर की तलाश थी। वह उठ खड़ा हुआ बोला, ‘महाराज। महाभोज दे दीजिए। शाकाहारी भोज। ऐसा भोज, जो साफ़-सुथरा हो। चपड़ी मौसी बताएंगी कि ऐसा भोज क्या हो सकता है।’ बिल्ली को कुछ सूझा ही नहीं। उसका सिर घूम गया। वह सिरदर्द का बहाना बनाने लगी। शेर ने नाराज़ होते हुए कहा, ‘चपड़ी मौसी, तुम कैसी सलाहकार हो। आज तक तुमने एक भी सलाह नहीं दी है।’ तभी चूहा बोला, ‘महाराज। दूध ही ऐसा भोज हो सकता है, जो शाकाहारी माना जा सकता है। दूध बड़ी कड़ाही में जमा करवाया जाए। दूध का दही जमवाया जाए। फिर उसका भोज में उपयोग किया जाए। लेकिन दूध की सुरक्षा भी बड़ी ज़िम्मेदारी है। मुझे तो चपड़ी मौसी पर भरोसा है। दूध की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी चपड़ी मौसी को ही दी जाए।’ शेर ख़ुश होते हुए बोला,‘वाह! अच्छा सुझाव है। हमारा आदेश है कि मौसी ही विशालकाय कड़ाही में दूध जमा करवाएगी। तीन दिन बाद दही समूची प्रजा को परोसा जाएगा। विशाल शाकाहारी भोज की घोषणा करवा दो।’
दूध जमा होने लगा। बिल्ली के घर में भीड़ लग गई। कुछ ही घंटों में विशालकाय कड़ाही दूध से लबालब भर गई। बिल्ली ने कड़ाही के पास अपना सिरहाना लगा दिया। लालची और चटोरी बिल्ली अपने पास ही रखे इतने बड़े ख़ज़ाने से हैरान थी। वह मन ही मन बोली, ‘मैंने ऐसा ताज़ा और गाढ़ा दूध कभी नहीं पिया। थोड़ा-सा दूध चपड़ लेती हूं। किसी को क्या पता चलेगा।’ बिल्ली ने कढ़ाही में मुंह डाला। वह थोड़ा दूध पी गई। दूध स्वादिष्ट था। थोड़ी ही देर बाद बिल्ली का जी िफर ललचाया। उसने थोड़ा दूध और पी लिया। दोपहर, शाम और रात को उठ-उठ कर बिल्ली चपड़-चपड़ कर थोड़ा-थोड़ा दूध पीती रही। बिल्ली को नींद नहीं आई। सुबह उठते ही उसने िफर दूध पी लिया। बिल्ली की जीभ में दूध का स्वाद चढ़ चुका था। बिल्ली का जब भी मन करता वो थोड़ा-थोड़ा दूध चपड़ लेती।
तीन दिन बीत गए। बिल्ली को दरबार में बुलाया गया। शेर ने पूछा, ‘मौसी। दूध सही-सलामत है?’ बिल्ली हड़बड़ाते हुए बोली, ‘जी हां। मैं पल भर के लिए भी कहीं नहीं गई।’ चूहा मुस्कराया। उसने पूछा, ‘चपड़ी मौसी। क्या दही जम गया?’ बिल्ली सकपका गई। कुछ नहीं बोल पाई। शेर दरबारियों के साथ बिल्ली के घर जा पहुंचा। कुत्ते ने कड़ाही में कड़छी डाली। दूध का दही जमा ही नहीं था क्योंकि उसमें से दूध लगातार निकाला जाता रहा था। चूहा तपाक से बोला,‘महाराज। दूध से छेड़खानी की गई है। लगता है, चपड़ी मौसी दूध चपड़ती रही। दही जमता कैसे। अब भोज का क्या होगा? प्रजा तो पंगत लगाकर बैठ गई है।’ शेर दहाड़ते हुए बोला, ‘भोज के लिए तो इंतज़ाम हो जाएगा। पहले मैं इस चपड़ी को चपड़ता हूं।’ इससे पहले कि शेर बिल्ली पर झपटता, वो नौ दो ग्यारह हो गई। बिल्ली पेड़ पर चढ़ गई। कहते हैं, तभी से शेर बिल्ली से नफ़रत करने लगा है। बिल्ली भी चूहे को देखते ही हमला कर देती है।