कावर झील एशिया की सबसे बड़ी शुद्ध जल की झील है और पक्षी अभयारण्य भी है. बिहार सरकार ने 1980 के दशक में 42 वर्ग किलोमीटर के 6311 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले इस झील को पक्षी विहार का दर्जा दिया गया था. यहां कि बर्ड संचुरी में मलेशिया, चीन, श्रीलंका, जापान, साइबेरिया, मंगोलिया, रूस आदि देशों से जाड़े के मौसम में प्रवास पर विभिन्न किस्म के विदेशी पक्षी और एक सौ से अधिक किस्म के देसी पक्षी आते थे.
सरकारी अधिसूचना के मुताबिक यहां पशु-पक्षी का शिकार अवैध है. इसमें पक्षियों के साथ-साथ विभिन्न प्रजाति की मछलियां भी पाई जाती हैं. एक अध्ययन के मुताबिक सैंतीस तरह की मछलियों की उपलब्धता इस झील में होती थी. झील के जलीय प्रभाग में कछुआ और सर्प जैसे जंतुओं की कई प्रजातियां तो पाई ही जाती थीं. स्थलीय भाग में सरीसृप वर्ग के छिपकलियों की विभिन्न प्रजातियां भी यहां पाई जाती हैं. झील के निकटवर्ती स्थलीय भाग में नीलगाय, सियार और लोमड़ी बड़ी तादाद में हैं. पशु-पक्षियों के साथ-साथ व्यावसायिक दृष्टिकोण से फल और सब्जियों का उत्पादन भी इस झील में किया जाता था और मखाना, सिंघाड़ा, रामदाना जैसे पौष्टिक तत्वों का उत्पादन यहां सालों भर होता था. लेकिन जैव विविधता और नैसर्गिक, प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण यह झील विलुप्त हो रही है.