रिपोर्ट अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में जारी की गई है। केंद्र सरकार को भेजी गई है। सरकार हर साल देश के सभी राज्यों में बच्चों की शैक्षणिक गतिविधियों पर सर्वेक्षण कराती है। इसमें विभिन्न बिंदुओं जानकारी ली जाती है।
प्राइमरी तक की पढ़ाई करने वाले अभिभावक भी पढ़ाते रहे बच्चों को
सर्वेक्षण में पाया गया कि बिहार के 80 फीसदी से अधिक बच्चों को गांव वालों व समुदाय का सहयोग पढ़ाई में मिला है। इसके अलावा 52 फीसदी अभिभावकों ने अलग-अलग कक्षा में बच्चों की पढ़ाई में मदद की है। लॉकडाउन में पढ़ाई और सीखने के लिए एक-दूसरे का सहयोग भी बढ़ा है। करीब तीन चौथाई बच्चों की पढ़ाई में उन अभिभावकों ने मदद की, जो खुद प्राइमरी तक शिक्षा हासिल किए हैं। बड़े भाई-बहनों ने भी पढ़ाने में मदद की।
लॉकडाउन में स्कूल-कोचिंग बंद होने पर प्रारंभिक कक्षाओं के बच्चों के लिए उनकी माताएं ही टीचर बन गईं। बिहार में प्रारंभिक कक्षाओं के 30 फीसदी से अधिक बच्चों की पढ़ाई माताओं ने ही कराई। एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट-2020 (असर) की रिपोर्ट से इसकी जानकारी सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान भाई-बहन से लेकर गांव वालों का भी सहयोग पढ़ाई में लिया गया है।
असर ने अपनी रिपोर्ट मार्च से सितंबर तक फोन पर ऑनलाइन सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की है। इसमें 5 से 16 आयु वर्ग के छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान पहली और दूसरी कक्षा के 30 फीसदी से अधिक छात्रों को उनकी मम्मी ने पढ़ाई कराई, जबकि तीसरी से आठवीं के 20-25 फीसदी छात्रों को उनकी मम्मी से पढ़ाई में मदद मिली। वहीं नौवीं से 12वीं के 15 फीसदी छात्रों को भी मम्मी से पढ़ाई में मदद मिली। ग्रामीण इलाकों के 80 फीसदी छात्रों की पढ़ाई में गांव वालों ने आगे बढ़कर मदद की है।